अगिन्

विकिशब्दकोशः तः


यन्त्रोपारोपितकोशांशः[सम्पाद्यताम्]

Vedic Rituals Hindi[सम्पाद्यताम्]

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अगिन् पु.
अगिन् का अभिमानी देवता, ऋ.वे. 1.181.1, इत्यादि, इसे आवश्यकरूप से दर्शपूर्णपास-इष्टि में पुरोडाश अर्पित किया जाता है; यह देवों एवं पितरों के लिए आहुति का वहन करता है अर्थात् आहुति को देवों एवं पितरों के पास पहुँचाता है (हव्यवाट् एवं कव्यवाट्) ऋ.वे. 1.12.6; वा.सं 2.29। देवों को यज्ञ में लाने वाला (स देवान् आ इह =एह वक्षति), ऋ.वे. 1.1.2, इत्यादि; देवों का सन्देशवाहक, ऋ.वे. 5.8.6, इत्यादि; अतिथि, ऋ.वे. 1.186.3, इत्यादि, गृह एवं प्रजाओं का स्वामी ऋ.वे. 1.36.5 इत्यादि; राक्षसों को मारने वाला, ऋ.वे. 1०.162.1, इत्यादि; एक सामन- पर आध्यक्ष्य करने वाला देव.ब्रा. 1.1; जन्म के समय वेत्ता ‘जातवेदस्’ ऋ.वे. 2.2.1, इत्यादि; अच्छे ‘स्विष्टकृत्’ का कर्ता, तै.सं. 1.5.2.1, इत्यादि, वैश्वानर (ऋ.वे. 4.5.2, इत्यादि), पवमान पावक, शुचि इत्यादि आगे (और अधिक) इसकी प्रकृति एवं कार्य के मूलादर्श को प्रस्तुत करते हैं; 2. (बहु.) तीन अगिन्याँः- आहवनीय, गार्हपत्य एवं दक्षिण, वा.सं. 12.5०। कभी-कभी सभ्य एवं आवसथ्य के साथ पाँच; (द्वि.व.) आहवनीय एवं गार्हपत्य, 3. (संक्षे.) ‘अग्निचयन’ अगिन्वेदि के सञ्चय अथवा अगिन्वेदि के अभिप्राय को प्रकट करता है (का.श्रौ.सू. 8.8.8), 4. अगिन्वेदि के लिए मिट्टी, तै.सं. 4.1.2.4; वा.सं. 11.9, 11.1०; 5. अगिन्वेदि का स्थल, बौ.श्रौ.सू. 2.17 ः 16; आप.श्रौ.सू. 16.8.5; (बहु.) उच्चतर वेदि के सञ्चय के लिए अभिप्रेत ईंटें, का.श्रौ.सू. 17.3.2० ः अन्त्येष्टि-अगिन्, ऋ.वे. 1०.15.14; पाकशाला की अगिन् (आवसथ्य या पूवागिन्); स्मार्तागिन्, शां.गृ.सू. 1.1.2. उत्तपनीय-अगिन् (तप्त कपाल पर तैयार किया गया)।

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