अगिन्चयन
यन्त्रोपारोपितकोशांशः
[सम्पाद्यताम्]Vedic Rituals Hindi
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अगिन्चयन न.
अगिन्-वेदि का चयन (राशीकरण = एक पर एक रखना) हि.श्रौ.सू. 15.6.6; बौ.गृ.सू. 3.1 ः 23, अगिन्वेदि के सञ्चय = चयन का कृत्य, उत्तरावेदि पर आहवनीयागिन् स्थापन के लिए ईंटों से पाँच तह (स्तर) सोम याग में समाविष्ट होते हैं ः श.ब्रा. में यह प्रजापति के ब्रह्माण्ड- जगत् के निर्माण की मानवीय प्रतिकृति (नकल)। वेदि में पाँच पशुओं के शिरस् का निर्माण किया जाता है एवं धड़ों को पानी में फेंक दिया जाता है। वेदि की ईंटें इस (इसी) जल से तैयार की जाती है। चींटी के बाबी की मिट्टी को एक गड्ढे की मिट्टी से मिश्रित किया जाता है, एवं आषाढा- संज्ञय प्रथम ईंट यजमान-पत्नी द्वारा बनाई जाती है। यजमान एक ‘उखा’ एवं तीन ‘विश्वज्योति’ (संज्ञक) ईंटों को तैयार करता है। ईंटों एवं उखा को आग में तपाया जाता है। दीक्षा के अनन्तर अनेक आकृतियों (में) अगिन्वेदि के निर्माण का आरम्भ होता है ः सुपर्ण (गरुण) श्येन (बाज) द्रोण इत्यादि (आहाव-नाद) (ये आकृतियों के नाम हैं) इत्यादि, का.श्रौ.सू. 16.5.9. ईंटों की भिन्न-भिन्न नामों वाली (जैसे- यजुष्मती) विभिन्न आकृतियाँ होती हैं, त्रिकोणीय, आयताकार, वर्गाकार, इत्यादि (मन्त्रपूर्वक रखी जाती है) प्रथम, तृतीय एवं पञ्चम तह (स्तर) का समान प्रतिदर्श (साँचा) होता है जबकि द्वितीय एवं चतुर्थ आपस में समान (किन्तु प्र. तृ. चतुर्थ से) भिन्न प्रतिर्दश वाली होती है। वह अगिन्क्षेत्र अगिन्चयन 13 भूमि जिस पर वेदि का निर्माण होता है, रस्सी से नापी जाती है एवं जोती जाती है, का.श्रौ.सू. 16.8. निमन्तम स्तर पर मनुष्य की स्वर्णाकृति को रख दिया जाता है। सभी पाँच स्तरों (तहों) के लिए सम्पूर्ण ईंटों की संख्या 1०6०० (चिन्ना 1०००, P. 97-98) होती है (का.श्रौ.सू. 17.7.2123) प्रत्येक स्तर को सघन कीचड़ (पुरीष) से ढक दिया जाता है, भूमि के स्तर (तह) पर एक जीवित कच्छप को रख दिया जाता है (आप.श्रौ.सू. 16.25.1) विभिन्न सामग्रियाँ जैसे-उलूखल (ओखली) एवं मुसल, एक उखा एक शूर्प (सूप) भिन्न-भिन्न स्थितियों (स्थानों) में रख दिये जाते हैं। चयन के लिए लगने वाले समय के बारे में मत- वैभिन्य है। प्रथम चार स्तर के लिए 8 माह एवं अन्तिम के लिए 4 माह अथवा केवल लगातार पाँच दिन, आप.श्रौ.सू. 16.35.9; 17.1.1; 11; अगिन्चयन का कृत्य बाध्यकारी है, कम से कम सैद्धान्तिकरूप से, केवल कुछ परिस्थितियों में, देखें श.ब्रा. 6-1०; इग्ग्लिंग श.ब्रा.अं XLIII परिचय; आप.श्रौ.सू. 16.17; का.श्रौ.सू. 16-18; कीथ, तै.सं. CXXV-CXXXI, तै.सं. 4.1.6; गार्हपत्यागिन्-वेदि का भी चयन होता है बौ.शु.सू. 2.61, इत्यादि। गार्हपत्य चिति अगिन्चिति (अगन्ेः चितिः = चयनम्) स्त्री. अगिन्-वेदि की निर्मिति, मा.श्रौ.सू. 18०.4; 218.2०।