अगिन्होत्र

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Vedic Rituals Hindi[सम्पाद्यताम्]

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


अगिन्होत्र न.
आहवनीय अगिन् में द्रवार्पण का कृत्य; सात हविर्यज्ञो में एक; दैनन्दिन (एक प्रतिदिन) किया जाने वाला यज्ञ (प्रातः एवं सायंकाल में) जिसमें गो दुग्ध की आहवनीय में आहुति दी जाती है, आप.श्रौ.सू. 6.1-15; एक मात्र यजुर्वेद से अनुष्ठित किया जाता है, हि.श्रौ.सू. 1.1.5। यह यज्ञीय अगिन् की स्थापना के समय प्रारब्ध (शुरु) होता है। अर्पण = हव्य (द्रव का) का परिशुद्ध समय विवाद का विषय है। या तो सूर्यास्त के पहले या थोड़ा बाद। यह नियम सायं एवं प्रातः दोनों पर लागू होता है, आप.श्रौ.सू. 6.4.7-9 तु. ऐ.ब्रा. 24.4-6, अगिन्होत्र-दुग्ध, भार.श्रौ.सू. 5.13.12। कोई (व्यक्ति) सभी तीन अगिन्यों को स्थायी रूप से बनाये रखे अथवा मात्र एक को ः यह प्रश्न् सूत्रों में वादप्रवृत्त (विचारित) हुआ है-3 अगिन्याँ, का.श्रौ.सू. 4.13.5; यह केवल गार्हपत्य है, आप.श्रौ.सू. 6.2.13। अतः गार्हपत्य से बाहर अगिन्होत्र की आहुतियों के लिए आहवनीय एवं दक्षिणागिन् को स्थापित करना पड़ता है। केवल ईंधन को ही लगाना पड़ता है, यदि किसी ने तीनों अगिन्यों को बनाये रखा है। सामान्यतः अगिन्होत्री गाय से शूद्र द्वारा दूध निकाला जाता है अर्थात् शूद्र अगिन्होत्री गाय को दुहता है, आप.श्रौ.सू. 6.3.11-14 अथवा ब्राह्मण के द्वारा, बौ.श्रौ.सू. 3.4। शूद्र दोहन कार्य के लिए निषिद्ध है, का.श्रौ. 4.14.1; गार्हपत्य से निकाले गये दहकते अङ्गारे पर दूध को गरम किया जाता है। इस (दूध) को ठण्डा होने देते हैं और अगिन्होत्र की कलछी में दुग्ध का एक भाग सायंकाल पहले अगिन् उसके बाद प्रजापति को (वा.सं. 3.9 से) अर्पित किया जाता है। प्रातः काल प्रथम आहुति सूर्य को, द्वितीय प्रजापति को दी जाती है। आहुति के बाद अध्वर्यु कलछी में लगे हुए दूध को अपने हाथ और दर्भ से पोंछता है। उसे कलछी में अवशिष्ट दुग्ध को पीना चाहिए। तब अगिन्होत्र-आहुति के बाद सायं के समय यजमान आहवनीय पशु, गृह, रात्रि और उसके बाद गार्हपत्य के प्रति प्रार्थनाओं को प्रस्तुत करता है, आप.श्रौ.सू. 6; बौ.श्रौ.सू. 3.4ः9, श्रौत.को. (अं) 1 (1) 85, 198; H.Dh II (2) 998-1००8। गोदुग्ध के विकल्प के रूप में यव का प्रयोग किया जाता है, श.ब्रा. 1.7.1.1०; अगिन्होत्र आहुति का भी नाम है, आश्व.श्रौ.सू. 2.2.16; हविर्यज्ञ सोम यागों में एक, जहाँ (जिसमें) दो अगिन्होत्र-आहुति दो सोम यागों के स्थान पर विकल्पित होती हैं अतः एक ‘अहीन’, शां.श्रौ.सू. 14.3.15 (टीका ः अगिन्होत्रसंज्ञकौ द्वौ हविर्यज्ञसोमौ); वह जो श्रौत अगिन् में अगिन्होत्र-आहुति अर्पित करता है, अ.वे. 6.97.1. देखें श्रौ.प.नि. 63.413422।

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