अग्न्याधेय
यन्त्रोपारोपितकोशांशः
[सम्पाद्यताम्]वाचस्पत्यम्
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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्। |
अग्न्याधेय¦ पु॰ अग्निराधेयो येन। अग्निहोत्रिणि साग्निकेद्विजे तत्प्रकारश्च
“पुण्यमेवादधीताग्निमित्युपक्रम्य कात्या-यनसंहितायां दर्शितः कल्पग्रन्थे च विस्तरी द्रष्टव्यः।
शब्दसागरः
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अग्न्याधेय¦ n. (-यं) Consecration of a perpetual fire. E. अग्नि, आधेय placing.
Monier-Williams
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अग्न्याधेय/ अग्न्य्-आधेय n. ([ AV. Mn. etc. ])placing the fire on the sacrificial fire-place
अग्न्याधेय/ अग्न्य्-आधेय n. the ceremony of preparing the three sacred fires आहवनीयetc.
Vedic Rituals Hindi
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अग्न्याधेय न.
यज्ञीय अगिन् के आधान (स्थापन) का कृत्य; इष्टि सदृश एक यज्ञ जिसमें दर्श के समान चार ऋत्विजों की आवश्यकता होती है। अग्न्याधेय में दो दिन लगते हैं ः प्रथम प्राथमिकों एवं द्वितीय प्रधान कर्म के लिए। नवचन्द्र (अमावस्या) अथवा पूर्णचन्द्र (पूर्णिमा) वाले दिन अग्न्याधान किया जा सकता है; किन्तु यजमान की जाति के अनुसार ऋतु भिन्न हो सकती है, आप.श्रौ.सू. 5.3.17- 2०. अगिन् स्थापन के कई दिन पहले अरणियों एवं अन्य सम्भारों को सज्जित (तैयार) कर लिया जाता है। यजमान और उसकी पत्नी स्नानार्थ एवं नखनिकृन्तनार्थ अपने को तैयार करते हैं, इत्यादि। मध्याह्न के समय अथवा जब सूर्य वृक्ष-शिखर पर होता है तब अध्वर्यु औपासन-अगिन् को निकालता है। इसे ब्रह्मौदन-अगिन् कहा जाता है, जिसपर 4 तश्तरी-भर चावल पकाया जाता है (ब्रह्मौदन) और उसपर घी को उड़ेला जाता है और अन्ततः सभी ऋत्विज् इसी का भक्षण करते हैं अग्न्याधान-अगिन्स्थापन के पूर्ववर्ती दिन पाशों का एक खेल (द्यूत) यजमान अपनी पत्नी एवं पुत्रों के साथ खेलता है, जबकि एक गाय खूँटे में बँधी रहती है। गाय की बलि दी जाती है (गोपितृयज्ञ), बौ.श्रौ.सू. 2.8-11; 15; 2०.16; 24.12-13। गाय के स्थान पर अज का प्रयोग भी हो सकता है। सभी अगिन्-स्थान को साफ किया जाता है। मध्यरात्रि के व्यतीत हो जाने के अनन्तर अध्वर्यु उत्तरारणि को अधरारणि पर रखकर अगिन्-मन्थन करता है। उद्गाता-विभिन्न सामों का गायन करता है अथवा उसकी अनुपस्थिति में ब्रह्मा ऋचाओं का पाठ करता है। इस प्रकार मथित अगिन् को एक पात्र में इकट्ठा किया जाता है और गार्हपत्य औपचारिक रूप से स्थापित कर दिया जाता है, और इसमें से अध्वर्यु इन्धन-समिधाओं को प्रज्वलित करता है, और उसे एक कड़ाही में ले जाकर आहवनीय की स्थापना के लिए पूर्व की ओर प्रस्थान करता है। बाद में आहवनीय से सभ्य एवं आवसथ्य का आधान किया जाता है। अगनीध्र गार्हपत्य अगिन् को लाता है अथवा अगिन्मन्थन कर दक्षिणागिन् का आधान करता है। अग्न्यन्वाधानप्रतिपत्का अग्न्याधेय 28 जब अध्वर्यु आहवनीय के स्थापनार्थ प्रस्थान करता है, तब आहवनीय-अगिन्-स्थान में सञ्चित निश्चित सामग्रियों पर अश्व को चलाया जाता है, अगिन्यों के स्थापन के बाद विभिन्न प्रकार के अन्न एवं समधिाओं को उसमें डाला जाता है। अन्त में पूर्ण चम्मच से आहुति प्रदान की जाती है (पूर्णाहुति), का.श्रौ.सू. 4.1०.5 टीका, देखें श्रौ.को. (अं) 1.78।