पर्याय
यन्त्रोपारोपितकोशांशः
[सम्पाद्यताम्]अमरकोशः
[सम्पाद्यताम्]
पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्। |
पर्याय पुं।
क्रमः
समानार्थक:आनुपूर्वी,आवृत्त,परिपाटी,अनुक्रम,पर्याय
2।7।37।1।1
पर्यायश्चातिपातस्तु स्यात्पर्यय उपात्ययः। नियमो व्रतमस्त्री तच्चोपवासादि पुण्यकम्.।
पदार्थ-विभागः : , गुणः, परिमाणः
पर्याय पुं।
अवसरः
समानार्थक:प्रस्ताव,अवसर,काण्ड,पर्याय,वार,अन्तर
3।3।147।2।2
पर्जन्यौ रसदब्देन्द्रौ स्यादर्यः स्वामिवैश्ययोः। तिष्यः पुष्ये कलियुगे पर्यायोऽवसरे क्रमे॥
पदार्थ-विभागः : , द्रव्यम्, कालः
Apte
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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्। |
पर्यायः [paryāyḥ], 1 Going or winding round, revolution.
Lapse, course, expiration (of time) कालपर्याययोगेन राजा मित्रसहो$भवत् Rām.7.65.17.
Regular recurrence or repetition.
Turn, succession, due or regular order; पर्यायसेवामुत्सृज्य Ku.2.36; Māl 9.32; Ms.4.87; Mu.3.27.
Method, arrangement.
Manner, way, method of proceeding.
A synonym, convertible term; पर्यायो निधनस्यायं निर्धनत्वं शरीरिणाम् Pt.2.99; पर्वतस्य पर्याया इमे &c.
An opportunity, occasion.
Creation, formation, preparation, manufacture; लोकपर्याय- वृत्तान्तं प्राज्ञो जानाति नेतरः Mb.12.174.3.
Comprehensiveness.
A strophe of a hymn.
Property, quality.
A means, stratagem (उपाय); न पर्यायो$स्ति यत् साम्यं त्वयि कुर्युर्विशांपते Mb.5.73.7.
End (अन्त); पर्यायकाले धर्मस्य प्राप्ते कलिरजायत Mb.5.74.12.
Contrariety, reverse; कालपर्यायमाज्ञाय मा स्म शोके मनः कृथाः Mb.6.2.5.
(In Rhet.) A figure of speech; see K. P.1; Chandr.5.18,19; S. D.733. [Note. पर्यायेण is often used adverbially in the sense of:
in turn or succession, by regular gradation, (opp. तन्त्रेण); पर्यायेण क्रियायामेवं दोषः । तन्त्रेण तु क्रियायां भवति क्वचित् संभवः । ŚB. on MS.6.2.2.
Occassionally, now and then; पर्यायेण हि दृश्यन्ते स्वप्नाः कामं शुभाशुभाः Ve.2.14].
Alternately; मत्सदृशं किमपि पुरूपं मां च पर्यायेण निर्वर्ण- यन्ती Dk.5. -Comp. -अन्नम् food intended for another.-उक्तम् a figure of speech in Rhetoric; it is a circumlocutory or periphrastic way of speaking, when the fact to be intimated is expressed by a turn of speech or periphrasis; e. g. see Chandr.5.66. or S. D.733.-क्रमः order of succession. -च्युत a. supplanted, superseded. -वचनम्, -शब्दः a synonym. -वाचकः a. expressing a corresponding notion. -शयनम् alternate sleeping and watching. -सेवा service by rotation; पर्यायसेवामुत्सृज्य Ku.2.36.
Monier-Williams
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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्। |
पर्याय/ पर्य्-आय m. going or turning or winding round , revolving , revolution Ka1tyS3r.
पर्याय/ पर्य्-आय m. course , lapse , expiration of time MBh. Hariv. Vet.
पर्याय/ पर्य्-आय m. regular recurrence , repetition , succession , turn( ibc. or 619290 येणind. in turn , successively , alternately ; चतुर्थे पर्याये, at the fourth time) Ka1tyS3r. La1t2y. Mn. etc.
पर्याय/ पर्य्-आय m. a regularly recurring series or formula ( esp. in the अति-रात्रceremony) Br. S3rS. (619291 -त्वn. )
पर्याय/ पर्य्-आय m. = -सू-क्तSa1y.
पर्याय/ पर्य्-आय m. a convertible term , synonym(619293 -ताf. 619293.1 -त्वn. ) Pan5c. Sa1h. Pa1n2. Sch.
पर्याय/ पर्य्-आय m. way , manner , method of proceeding( अनेन पर्य्-आयेण, in this manner) SaddhP.
पर्याय/ पर्य्-आय m. probability MBh.
पर्याय/ पर्य्-आय m. (in rhet. )a partic. figure of speech Kpr. Sa1h.
पर्याय/ पर्य्-आय m. (with जैनs) the regular development of a thing and the end of this -ddevelopment Sarvad.
पर्याय/ पर्य्-आय m. opportunity , occasion L.
पर्याय/ पर्य्-आय m. formation , creation L.
पर्याय/ पर्य्-आय m. point of contact L.
पर्याय/ पर्य्-आय m. (with शब्द)a synonym MBh.
पर्याय/ पर्य्-आय m. periodically Ka1t2h. Sus3r.
पर्याय/ पर्य्-आय m. in succession , by turns MBh.
पर्याय/ पर्य्-आय etc. See. under 2. परी-.
Vedic Rituals Hindi
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पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्। |
पर्याय पु.
(परि + इ + घञ्) 1. पत्थर से सोम-लताओं पर चोट करने की एक बारी अथवा एक आवृत्ति। इस प्रकार की तीन आवृत्तियां (चक्र) होती है, आप.श्रौ.सू. 12.12.8- 9, 2. स्तोम में विद्यमान ‘तृच्’ के गायन का एक आवर्तन (अथवा बारी); वहाँ सदैव तीन आवृत्तियां होती है, जो मिलकर एक ‘विष्टुति’ (वैभिन्य) बनाती हैं। प्रत्येक पर्याय में ‘विष्टुति’ एवं ‘स्तोम’ पर आश्रित विभिन्न अथवा समान संख्या में चीन चरण (पंक्तियां) होती हैं। प्रत्येक पर्याय की रचना उपविभागों के तीन प्रकार की आवृत्तियों से होती है, एक के बाद दूसरे क्रम से विभिन्न स्थितियों में आने ‘तृचभागा’, ‘आवापा’ (स्थान) एवं परिचरा (ऋचाओं से) युक्ताओं के साथ इसे ‘विष्टाव’ कहते हैं, द्रष्टव्य - ‘रात्रिपर्याय’, जिसका अनुष्ठान रात्रि में होता है और जिसमें 4 स्तोत्र, 4 शस्त्र एवं 4 आहुतियां होती हैं। उनके ‘रात्रि- पर्याय’ का गायन ‘अतिरात्र’ के लिए किया जाता है; 3. (पाठ का) चक्र मा.श्रौ.सू. 6.2.3.13 (परेष्ठी त्वा सादयतु इति पर्यायेण उपदधाति); उच्चारण का एक चक्र, आप.श्रौ.सू. 17.2०.1 (ऋताषाड् ऋतधाम इति पर्यायम् अनुद्रुत्य); 4. ‘सम्राड् अ------’, आदि से प्रारम्भ होने वाले मन्त्रों का नाम, जिनका उच्चारण आहवनीय अगिन् की प्रशंसा में इसके आधन के बाद किया जाता है, श्रौ.को. (अं.) 1.5०; पशु-याग के प्रसङ्ग में पर्याय मन्त्र वे हैं, जो ‘अगन्ेर्भस्मासि-----’ से प्रारम्भ होते हैं और जिनका उच्चारण ‘उत्तरवेदि’ की नाभि में मेष के ऊन, चरु एवं गुग्गुल को रखते समय किया जाता है, वारा.श्रौ.सू. 1.6.2.31-3.25. पितृमेध में यजमान इन मन्त्रों का उच्चारण करता है। यहाँ इनका प्रारम्भ ‘ब्रह्मणा एकहोता-----’ से अगिन् पर रखे गये उस व्यक्ति से प्रार्थना करने के लिए किया जाता है, जिसकी अन्त्येष्टि हो चुकी है, श्रौ.को. (अं.) 1.1०65।