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प्रउग

विकिशब्दकोशः तः


यन्त्रोपारोपितकोशांशः[सम्पाद्यताम्]

Apte[सम्पाद्यताम्]

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


प्रउगम् [prugam], A triangle.

Monier-Williams[सम्पाद्यताम्]

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


प्रउग/ प्र-उग n. (prob. fr. प्र-युग)the forepart of the shafts of a chariot RV. (See. हिरण्य-प्) TS. S3Br. Ka1tyS3r.

प्रउग/ प्र-उग n. a triangle Ma1nGr2. S3ulbas.

प्रउग/ प्र-उग mn. = -शस्त्रRV. VS. Br. S3rS.

Vedic Rituals Hindi[सम्पाद्यताम्]

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


प्रउग न.
1. अगिन्ष्टोम याग में होता द्वारा प्रातःकालिक सत्र में पढ़े जाने वाले द्वितीय लघु प्रार्थनात्मक शस्त्र का नाम। सङ्गत स्तोत्र के प्रतिहार के अन्त में प्रैष दिये जाने पर उसे पाठ प्रारम्भ कर देना चाहिए। प्रउग शस्त्र में निश्चित अभिव्यञ्जनायें मुधुच्छन्दस् के तृचों के बीच व्यवधान करती हैं। इनकी संख्या सात है एवं इन्हें ‘पुरोऋच्’ कहा जाता है। छठें में उसे तीन बार विराम (यति) लेना चाहिए अर्थात् प्रत्येक अर्ध के अन्त में (यति करनी चाहिए)। इन प्रत्येक अभिव्यञ्जनाओं के बाद पढ़े जाने वाले तृच वे हैं, जिनका प्रारम्भ ‘वाय आ याहि दर्शत-------’ से होता है। अन्त में उसे उक्थ वीर्य मन्त्रों का जप करना चाहिए, अर्थात् वाचं में जिन्व--------’, आश्व.श्रौ.सू. 5.1०.1-1०; शां.श्रौ.सू. 7.1०; 8.14.2, ‘प्रउग शस्त्र’ का पाठ आज्य शस्त्र के पाठ से अधिक ऊँची ध्वनि से (ज़्यादा जोर से) किया जाना चाहिए। यह प्रार्थना (शस्त्र) ऋ.वे. 1, 2 एवं 3 से निबद्ध है जिनमें 21 ऋचायें हैं, जो सात त्रिकों में विभक्त हैं, और पाठ में जिनके प्रत्येक के पूर्व एक ‘पुरोरुच्’ होता है; 2. शकट-दण्ड का अग्र भाग, का.श्रौ.सू. 7.9.4; पु. सम-द्विबाहु त्रिकोण (बौ.शु.सू. 1.56); त्रिकोण की आकृति में निर्मित एक प्रकार की अगिन्-वेदि का नाम, बौ.शु. 4.1०7-11०।

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