षड्होतृ

विकिशब्दकोशः तः


यन्त्रोपारोपितकोशांशः[सम्पाद्यताम्]

Vedic Rituals Hindi[सम्पाद्यताम्]

पृष्ठभागोऽयं यन्त्रेण केनचित् काले काले मार्जयित्वा यथास्रोतः परिवर्तयिष्यते। तेन मा भूदत्र शोधनसम्भ्रमः। सज्जनैः मूलमेव शोध्यताम्।


षड्होतृ पु.
1. छः विशिष्ट मन्त्रों के एक समूह का नाम, आप.श्रौ.सू. 11.16.3 (उसका उच्चारण उस पशुयाग के प्रसङ्ग में नहीं होता, जो एक दूसरे यज्ञ की रूपरचना करता है। फिलहाल वायव्य, पञ्चपशु एवं सौत्रामणी के मामले में, इन कृत्यों के दूसरे यज्ञों का किसी प्रकार से अङ्ग के रूप में मान्यता) होने पर भी इन मन्त्रों का प्रयोग होता है; चि.भा.से. छः होत्र (होताओं) के मन्त्रों का नाम (अगनीध्र एवं प्रस्तोता के साथ चार प्रधान ऋत्विज्), ये मन्त्र तै.आ. 3.4 में समामनत हैं, श्रौ.को. (सं.) 1.127; पशु के प्रारम्भ में इनका वाचन किया जाता है (आप.श्रौ.सू. 7.1.2); भा.श्रौ.सू. 7.1.1; सोम के विभिन्न अवसरों पर भी, यजमान द्वारा भी इनका वाचन किया जाता है, आप.श्रौ.सू. 13.12.11; द्रष्टव्य - चतुहोतृ मन्त्र ‘वाग्घोता------’ आदि। यदि कोई यह कामना करता है कि ऋतुएं उसके लिए भाग्यप्रद हों, तो उसे प्रत्येक सत्र के प्रारम्भ में इससे एक आहुति अर्पित करनी चाहिए। इसकी आहुति उस व्यक्ति द्वारा भी दी जाती है, जो अपने एवं अपने पुत्र के लिए सोमपायित्व (सोमपान का अधिकारी होने की) कामना करता है, श्रौ.को. (अं.) I.2०7 (आप.श्रौ.सू. 4.13-15). ‘यूपाहुति’ के पूर्व एक आहुति के लिए चार चम्मच घी लेने के पहले मन्त्र को मन में पढ़ना होता है, बौ.श्रौ.सू. 4.1-2, पशुयाग में, मा.श्रौ.सू. 1.8.1.1-2० के अनुसार (मन में पढ़े जाने वाले) इस मन्त्र से एक आहुति उस व्यक्ति द्वारा दी जाती है, जो ‘इन्द्रागनी’ के लिए पशुयाग के अनुष्ठान की इच्छा रखता है। वध्य (पशु) के अङ्गों को इस मन्त्र से वेदि के दक्षिणी नितम्ब पर रख देना चाहिए, आप.श्रौ.सू. 7.22.1-26.7. पितृमेध में ‘सूर्यं ते चक्षुः’ आदि की ‘षड्होतृ’ के रूप में मान्यता है, जिसका वाचन शव के आग की लपटों को पकड़ लेने पर किया जाता है। वैखा गृ.सू. 5.1-6 अनुसार ष ‘सूर्यं ते’ आदि (छः भागों वाले) इस मन्त्र से तिल, तण्डुल (चावल के दानों) आदि के मिश्रण को मृत की आँखों में डालना चाहिए, कुछ लोग इसका विधान दोनों कानों के लिए करते हैं, श्रौ.को. (अं.) 1.1०63. मन्त्र ‘षडहोता सूर्यं ते चक्षुः-----’ इस प्रकार प्रारम्भ होता है और इसका उच्चारण ‘श्मशानचिति’ के चयन के कृत्य के समय अस्थियों के कलश को साफ करने के बाद किया जाता है, श्रौ.को. (अं.) 1.1०99; द्रष्टव्य - श्रौ.प.नि. 12०.8; 2. एक आहुति का नाम जिसे ‘षड्होतृ’ मन्त्र के साथ अर्पित किया जाता है। यह पशुयाग के दौरान अनुष्ठित पाँच ‘दर्वीहोमों’ में अन्यतम के रूप में व्यवहृत होता है (अन्य हैं ‘यूपाहुति’, बूंदों से सम्बद्ध होम, शोरबे की आहुति एवं दिशाओं तथा ‘उपयज्’ के लिए), बौ.श्रौ.सू. 4.1-1०; श्रौ.को. (अं.) I.833।

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